सत्य का स्पर्श जीवंत प्रवाह में
सत्य का स्पर्श
जीवन के जीवंत प्रवाह में ही
होना है
सभी संबंधों में, अंतःक्रियाओं में.
रोजमर्रा जिंदगी में ही होना है
जैसे नदी का स्पर्श उसकी
बीच-धारा में है
तट पर बैठकर उसकी पूजा आराधना
जप-जाप करने में नही
...................................... अरुण
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