मन की पकड़
मन किसी भी वस्तु,
घटना, प्रसंग या स्थिति को
शुद्ध समझ से देख नही पाता
शब्द नाम और संकल्पनाओं की गति में
मन हमेशा उलझा हुआ है
‘जो जैसा है’ उसे वैसा ही देखने की जगह
देखने पर जो प्रतिमा बनती है उस
प्रतिमा को ही मन
वास्तविकता का स्थान देता है
परिणामतः
शुद्ध समझ बन ही नही पाती
............................................ अरुण
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