अच्छापन या सच्चापन
सभी धर्मों का आशय इतना ही है कि
आदमी में सत्पुरुष अवतरित हो
ऐसा होने के लिए
आदमी क्या करे, यह कोई भी धर्म
न सिखाता है और न सिखा सकता है
इस प्रकार की सीख देने के प्रयास में
लौकिक अर्थ में कई तथाकथित धर्म
प्रचलित हुए पर सभी अधिक से अधिक
‘अच्छा’पन सिखा सके ‘सच्चा’पन नही,
क्योंकि
सच्चापन आदमी की अपनी निजी खोज से फलता है
किसी सामाजिक अभियान से नही
...................................................... अरुण
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सच्चापन आदमी की अपनी निजी खोज से फलता है
किसी सामाजिक अभियान से नही...... बिलकुल सही कहा आपने.