सुगंध और लोगों की भीड़

यहाँ का माहोल, यांत्रिक भीड़

शोरोगुल और लोगों में चेहरों पर

दिखता यांत्रिक अहोभाव देखकर लगा

मानो

कोई फूल यहाँ उमड़ पड़ा होगा

अपनी सुगंध को चहुँओर फैलाते

इधर उधर से लोग खींचते चले आये होंगे

उस सुगंध के कारण

समय के बीतते फूल मुरझाया और

कालांतर से गंध भी खो गई

समय के आकाश में

परन्तु भीड़ का सिलसिला चालू रहा

भीड़ ने अपनी ही गंध को

उस सुनिसुनायी सुगंध का नाम दिया

अब भीड़ को देखकर

व्यापारियों की भी रूचि बढ़ी

उन्होंने खड़ा किया भव्य मंदिर

चढाओं की परम्परा चलाई

प्रसाद बांटना शुरू किया

भीड़ इतनी बढ़ी कि उस सुगंध के नाम से

होटलों, बसों, और टूरिस्ट सेंटरों का

भी धंधा चल पड़ा है अच्छी तरह

................................................... अरुण

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