आशय एक, अभिव्यक्ति भिन्न
नींद ही नींद से करती बातें
जागनेवालों में होती नही चर्चा कोई
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देखना बंद हुआ बोलना हुआ चालू
ये जहाँ बोलनेवालों से ही आबाद हुआ
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ये घना फैल चुका है लफ्जों का नगर
के समझ लफ्जों तले घुंटती मरी जाती है
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ख़ामोशी- भीड़ में रहती है अकेली न हुई
हर दो लफ्ज के दरमियान बसा करती है
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बोलने और सुनने वाले में न फर्क कोई
एक ही जहन निभाता, दो अलग किरदार
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