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बेहोशी का भविष्य पूर्वनिर्धारित है

अतीत की गुफा से बाहर निकला और अतीत की बेहोशी में आगे बढ़ता आदमी आज और आनेवाले कल को, किस तरह बर्ताव करेगा ?... इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं. उसका अतीत ही उसके भावी कदमों का परिचय करा देता हैं. जो अतीत की बेहोशी से मुक्त है, उसका भविष्य नहीं बतलाया जा सकता क्योंकि वह, बाहर हर पल बदलते हुए परिदृश्य को देखते हुए, पूरे होश में चलता रहता है. -अरुण  

अब भी वही जेहन है जिद्दोजहद लिए ..

अतीत में घटी विरली घटनाएँ याद बनकर टिक जाती हैं. मतलब यही कि अतीत में भी अविरली यानि सामान्य घटनाएँ वैसी ही घटती थी जैसी आज घट रही है. आदमी आदम से लेकर आज तक वैसा ही रहा है... वही जिद्दोजहद, वैसी ही परेशानियाँ, वैसे ही उत्सव, दुःख भुलाने की वैसी ही तरकीबें.... मन को रीझनेवाले वैसे ही मनोरंजन..... उनके स्वरूप बदलते रहे हैं पर भावानुभाव तो वही रहा है एक जैसा. -अरुण  

मन न होता तो आदमी का जीवन सहज सरल होता

अपनी पांच इन्द्रियों के माध्यम से, भीतर (मस्तिष्क) पहुँचने वाली संवेदना से संवेदित होते हुए, इस   अनुभव को यदि आदमी उसी क्षण भूल सकता होता, तो उसके पास.. न इतनी आधिक क्षमतावाली स्मृति होती और न ही   बीते अनुभव को सहेजकर रखने वाला मन होता. आदमी का जीवन पशु-पक्षीयों की तरह सहज और सरल बन जाता. सुख दुःख तो घटते पर... आदमी उन्हें जिंदगी भर सहेज कर न रखता. आदमी को अपना प्रपंच चलाने के लिए, मन की जरूरत पड़ी सो उसे मन मिल गया, पर इसी मन ने आदमी की शांति छीन ली है. सारी आशांति का कारण मन ही है परन्तु अज्ञानवश मनुष्य इस बात को समझे बिना ही मन को शांत करने के टोटकों में उलझ गया है. मन पर पूरा ध्यान जाते मन थम जाता है.. इसके विपरीत, मन को किसी कवायत में लगा देने से (जप जाप मंत्र तंत्र ) मन थमना तो दूर अधिक गहराई से अपने पैर जमाता है, पसारता है. -अरुण

मनुष्य की सारी फड़फड़ाहट .... यही है

भौतिक जगत में पिंजड़ा और पक्षी दो भिन्न वस्तुएं हैं. मनस जगत में पक्षी ही अपने चहुंओर पिजड़ा खड़ा कर देता है और फिर बाहर निकलने के लिए फडफडाता रहता है. हार्डवेयर जो नहीं कर सकता, सोफ्टवेयर कर देता है. उदाहरणार्थ, आदमी को एक स्थान से दूसरे स्थान पहुचने के लिए गति, शक्ति और समय, तीनों की जरूरत पड़ती है परन्तु आदमी का दिमाग, बिनसायास बिना समय के, इस माने स्थल से उस माने स्थल पर पहुँच जाता है. मानना काम है मन का (सोफ्टवेयर) और करना काम है तन का यानि (हार्डवेयर) का. इस तथ्य के अंतर्गत, विचार (पक्षी) अपने साथ विचारक (पिंजड़ा) को ले आता है. न तो विचार से विचारक और न ही विचारक से विचार अलग हो सकता है. मनुष्य की सारी फड़फड़ाहट ... यही है -अरुण       

बुद्ध, कृष्ण, महावीरसा था क्राइस्ट

था अहो का भाव वह सूली-चढ़ा   कठिनता से ना मिटा करुणाभरा अहं को जीता हुआ वह हंत था निर्वाण था, निष्काम था, अरिहंत था -अरुण