ना होते कारण कुई ...



ना होते कारण कुई,      चढ़े दात में पीर
औषधि पर औषध लिया, फिर भी नैनन नीर
बिना किसी कारण अगर दांत में पीड़ा होने लगे तो उसके लिए सभी औषधियां व्यर्थ हैं.  
मेरा यह दोहा इसबात पर प्रकाश डालता है कि मनुष्य का मूल दुःख भ्रान्ति या दृष्टिदोष  से उपजा है, उसका कोई भी कारण नहीं. अखंड जगत में प्रत्येक व्यक्ति जगत ही है, परन्तु अपने को जब वह भिन्न देखने (है नहीं) लगता है, दुःख की परंपरा शुरू हो जाती है. ऐसे भ्रान्ति-जन्य दुःख के लिए कोई उपाय कैसे हो सकता है? ‘अपने को भिन्न समझने’ की भ्रान्ति का हट जाना ही एकमात्र घटना है जो सारे दुखो से मुक्ति दिलाती है. ख्याल रहे - यह घटना है, उपाय नहीं, क्योंकि उपाय तो भ्रांत व्यक्ति की खोज है जबकि घटना है सही समझ को यथार्थ की होनेवाली अनुभूति.
-अरुण    

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