मै हूँ दिल्ली – सुनो मेरी कैफियत
आजकल मेरे राजनैतिक धरातल पर धूम-थ्री का
शो बड़े ही शोरोगुल के साथ चालू है. पहले यह तमाशा केवल धूम-टू तक ही सीमित हुआ करता था, अब उसमें धूम
थ्री का आयाम जुड़ गया है. दोनों ही अनुभवी तमाशेबाज, तीसरे की हर चाल को नौटंकी की संज्ञा दे रहे है
क्योंकि तीसरा अभी नौसिखिया है. वह हर कदम अपने अभिभावकों (जनता जनार्दन) को पूछकर
उठाना चाहता है और दोनों इसबात पर उसकी खिल्ली उड़ा रहे हैं. अभिभावकों को पूछकर
निर्णय लेना – दोनों को ही बड़ा बचकाना लगता है क्योंकि उनका स्वयं का अनुभव बिलकुल
ही दूसरे छोर का रहा है.
दरअसल किसी ने सोचा ही न था कि मेरे
अखाड़े में दो के अलावा तीसरा भी कोई खिलाडी प्रवेश पा सकेगा. दोनों का मुझपर बहुत
ही भरोसा था. उनके इस भरोसे का चक्का टूटते ही, दोनों ही धडाम से नीचे गिर पड़े है.
एक की हालत बिलकुल ही नाजुक है तो दूसरा उठकर फिर चल सकने की सोच पा रहा है.
अभी तो मेरे राजनैतिक आकाश में नैतिकता
की बयार चल पड़ी है, और इसीलिए अनैतिक मार्ग का सहारा लेना तीनो खिलाडियों को इतना सुविधाजनक
नहीं रहा. ढकोसले की आड़ में बड़ी बड़ी बातें करने और एक दूसरे की बखिया उधेड़ने के
सिवाय उन तीनो के पास कोई चारा नहीं है.
आशा है कि कल परसों तक मेरे धरातल का चित्र
कुछ साफ़ हो पाएगा. मेरे अखाड़े के सिंहासन पर जिसके बैठने की सम्भावना है वह बैठता
है या नहीं – यह स्पष्ट हो जाएगा. बैठने के बाद वह क्या कर पाता है या नहीं कर
पाता –यह तो देखनेवाली बात होगी. अभी तो मेरे तीनो खिलाडियों को चिंता सताये जा रही
है. तीनो की व्यथाएँ अलग अलग हैं. पहला पूरीतरह से हारा हुआ, दूसरा विवश है तो तीसरा
- चुनौतियों के बोझ के नीचे दबा हुआ. परन्तु मैंने अभीभी धीरज नहीं खोया क्योंकि
मै जानती हूँ ..... जो भी होगा वह आजसे तो बेहरत ही होगा.
-अरुण
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