मन न होता तो आदमी का जीवन सहज सरल होता
अपनी पांच इन्द्रियों के माध्यम से,
भीतर (मस्तिष्क) पहुँचने वाली संवेदना से संवेदित होते हुए, इस अनुभव को यदि आदमी उसी क्षण भूल सकता होता, तो उसके
पास.. न इतनी आधिक क्षमतावाली स्मृति होती और न ही बीते अनुभव को सहेजकर रखने वाला मन होता. आदमी
का जीवन पशु-पक्षीयों की तरह सहज और सरल बन जाता. सुख दुःख तो घटते पर... आदमी उन्हें
जिंदगी भर सहेज कर न रखता. आदमी को अपना प्रपंच चलाने के लिए, मन की जरूरत पड़ी सो उसे
मन मिल गया, पर इसी मन ने आदमी की शांति छीन ली है. सारी आशांति का कारण मन ही है
परन्तु अज्ञानवश मनुष्य इस बात को समझे बिना ही मन को शांत करने के टोटकों में उलझ
गया है. मन पर पूरा ध्यान जाते मन थम जाता है.. इसके विपरीत, मन को किसी कवायत में
लगा देने से (जप जाप मंत्र तंत्र ) मन थमना तो दूर अधिक गहराई से अपने पैर जमाता है,
पसारता है.
-अरुण
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