भीतरतम और बाहरतम ....
भीतरतम और बाहरतम का
एक साथ जी जाना
योग नहीं है भिन्न
यही है सकल जगत का ध्यान
यही है ज्ञान भक्ति और कर्म
यही है सकल बोध का मर्म
समझ में आ जाए तो
नहीं जरूरी गीता बाइबल और कुरान
यही है वह खुदा, यही है वह राम ...
इसी बात पर .. हो जाए अब विराम
-अरुण
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