भीतर बाहर, इधर उधर, नीचे ऊपर, हर छूटी भरी जगह में केवल अस्तित्व ही अस्तित्व है। इसके अंतर्बाह्य गति संचार में ही निद्रस्थ असत्य एवं जागृत सत्य, दोनों विराजमान हैं।
- अरुण
धीमी-धीमी मृदुल हवा से गतिमान समन्दर की लहरें हों या बवंडर से आघातित ऊँची ऊँची उछलती लहरें समन्दर की लहरों में हमेशा ही एक लय बद्धता है उनमें कोई आतंरिक संघर्ष नही सभी लहरें एक ही दिशा में एक ही ताल, रिदम में चलती, उछलती हुई परन्तु मन की लहरें आपस में ही भिड़ती, एक दूसरे से जुदा होते हुए अलग अलग दिशा में भागती तनाव रचती, संघर्ष उभारती मन की लहरें समन्दर की लहरों के पीछे एक ही निष्काम-शक्ति है मन की लहरों के पीछे परस्पर विरोधी इच्छा-प्रेरणाएँ ............................................................. अरुण
कहना उन्हें फिजूल सुनना जिन्हें सजा है वैसा भी कह के देखा., जैसा उन्हें रजा है लफ्जों की कश्तियों से बातें पहुँच न पाती इक साथ डूबने का कुछ और ही मजा है ............................................. अरुण
सभी कामनाएँ सफल हो गयीं पर नही तृप्त होती मनस प्यास पूरी सारे सवालात जीवंत मन के जबाबों से उनकी नही कोई दूरी किसी भी शिला से निकालो निरर्थक बचे शिल्पसा एक सार्थक जरूरी व्यक्तित्व की तब निद्रा विखंडित अचानक सजगता, करे वार भारी कभी शेर में ढल , कभी मुक्त कविता मनन चिन्तना की, बहे धार सारी ................................................ अरुण
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