अस्तित्व का गति संचार

भीतर बाहर, इधर उधर, नीचे ऊपर, हर छूटी भरी जगह में केवल अस्तित्व ही अस्तित्व है। इसके अंतर्बाह्य गति संचार में ही निद्रस्थ असत्य एवं जागृत सत्य, दोनों विराजमान हैं।
- अरुण

Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

पुस्तकों में दबे मजबूर शब्द

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के