अहंकार ! – तेरे नाम हजार



जब चेतना पर अहंकार का रोग आरोपित (यानि चेतना में मिलता नहीं, चेतना को पकडे हुए है ऐसा प्रतीत होता है) हो जाता है, कई तरह के मनोविकार भीतर झलकने लगते है. मूलतः अहंकार ही वह एकमेव विकार है जिसके कई चेहरे हैं. अहंकार की अवस्था को कई नामों से पुकारा गया है. अहंकार दैनिक एवं व्यावहारिक जीवन में उपयोगी भी और उपद्रवी भी. विवेकवान आदमी दोनों के बीच सही संतुलन बनाए रखता है. अति पर झुकता आदमी या तो दूसरे पर हिंसा करता है या केवल खुद की ही सोचते हुए, निराश होता है या ....कट्टर मतलबी बर्ताव से ग्रसित हो जाता है.

अन्धकार (आतंरिक), अज्ञान. मूढ़ता, अन्धविश्वास.... ऐसे कई शव्द अहंकार के ही पर्यायवाची हैं. काम, क्रोध, लोभ, मोह भी अहंकार के ही रूप हैं. ममता, माया, लगाव, तादात्म भी अहंकार के ही लक्षण है. ये समाज के जब अनुकूल होते हैं, सौहार्द बना रहता है, समाज के जब विरोध में खड़े होते है, इन्हें समाजघात या/और आत्मघात की श्रेणी में बैठा दिया जाता है.

आत्म-बोध का लय होते ही अहंकार जगता है और तुरत ही द्वन्द और विकारों के मार्ग को प्रशस्त करता है. ठीक उलट, आत्म-बोध का जागरण और अहंकार का लोप – एक ही घटना के दो नाम हैं.
-अरुण
  
   

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