आध्यात्म है साहसपूर्ण दृष्टि
घाट की सीढ़ियों से नीचे उतरते जा रहे हो इस
उम्मीद में की एक दिन तो नदी में मिल जाओगे.....
परन्तु आध्यात्मिक अनुभूति के बाबत ठीक उलट घटता
है. यहाँ सीढ़ी उतरने वाले के सामने सीढ़ियों की संख्या बढती जाती हैं और नदी घाट से
दूर होती जाती है. यहाँ पूर्ण दृष्टि के
साथ छलांग लगाने वालों की जरूरत है, सीढियां बनाकर उतरने वालों की नहीं. सीढियां
बनाना बौद्धिक कवायत है, छलांग लगाना है साह्सपूर्ण दृष्टि.
-अरुण
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