विश्वास बनाम श्रद्धा
संशययुक्त आदमी
संशय की पीड़ा को
भुलाने के लिए
विश्वास रखता है,
जो आदमी निःसंशय
है वह
श्रद्धा-युक्त
होने से उसके मन में संशय
पूरी तरह
अनुपस्थित है.
अधिकाधिक लोगों के
धार्मिक विश्वास
संशययुक्त होते है
और इसीलिए वे लोग
नास्तिकों से भिन्न
नही होते,
केवल आत्मज्ञानी
ही संशयमुक्त यानि श्रद्धावान है
-अरुण
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