सम्बन्ध-जीवन बनाम स्वभाव जीवन
यह संसारी लेनदेन हमारा
सम्बन्ध-जीवन है
जो विनाशयुक्त है,
इसके परे जो जीवन हम
अनजाने
जी रहे है, वह है
हमारा स्वभाव-जीवन
जो अविनाशी है.
स्वभाव जीवन का न कोई
रूप है, न स्वाद,
न गंध है और न ही कोई
स्वर या स्पर्श और इसीलिए
वह अविनाशी हुआ जाना
गया है.
इस अनजाने जीवन को
जागते हुए
जीना ही भक्ति है
-अरुण
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