मन की गहराई और ऊंचाई



पश्चिम के मनोवैज्ञानिकों ने
मन की गहराई में उतर कर
अन्तःस की सारी खोजबीन की तो
पूर्व के मनसविदों ने मन से ऊपर उठे
चेतना-आकाश की ऊंचाईयों में प्रवेश किया,
केवल गहराई या केवल ऊंचाई वाली खोज
अपने आप में अधूरी रही.
गीताकार कृष्ण, जे. कृष्णमूर्ति, ओशो और इनके जैसे कई
तत्वबोधियों ने ध्यान, मैडिटेशन, आत्म-खोज,
अद्वैत-बोध द्वारा अस्तित्व की अनुभूति के बल पर      
‘अस्तित्व को तत्व से जानने’ की बात कही.
तत्व से जानने (बिना किसी माध्यम के सीधे सीधे) में
गहराई और ऊंचाई दोनों तक
एक साथ एक ही पल में
पहुँचना बन पाता है
-अरुण

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