सपनों भरी है जिन्दगी



दिन के सपने रात के सपनों पे हंसते हैं
और फिर कब नींद से जा मिलेते हैं -  
इसका उन्हें पता ही नही,
रात और दिन की इस सपनों भरी जिन्दगी ने
सपनों के बाहर क्या है
इसे कभी जाना ही नही है
-अरुण    

Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

पुस्तकों में दबे मजबूर शब्द

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के