‘जानना’ और परिचित होना – दो भिन्न अनुभव



‘जानने’ से जान बन जाती है जो जाना गया
दूर से परिचय बना तो सिर्फ पहिचाना गया
-अरुण
प्रायः हम जिसे जानना कहते हैं वह किसी
वस्तु या object के बाबत की सारी जानकारी या
परिचय इक्कठा करने का काम है,
इसी एकत्रित और inferred जानकारी के जरिए
उस वस्तु की पहचान बनाई जाती है.
Spirituality या आध्यात्म के सन्दर्भ में
जानने का अर्थ - जाननेवाला और जानी गई
वस्तु का एक रूप हो जाना होता है.
ऐसा घट सकता है  
केवल अनन्यभाव या अद्वैत के जागने पर ही
-अरुण

Comments

Popular posts from this blog

लहरें समन्दर की, लहरें मन की

तीन पोस्टस्

लफ्जों की कश्तियों से.........