मंजिल न हो पर कोशिश जारी



कोशिशें किसी उद्देश्य से ही होती हैं
किसी मंजिल की दिशा में ही व्यस्त की जाती हैं
परन्तु ज्ञानी पुरुष
किसी भी आसक्ति से मुक्त होता हुआ भी
प्रयत्नशील है इस अर्थ में कि
उसका देहरूप हमेशा किसी न किसी
काम या प्रक्रिया में रहेगा ही.
भले ही वह कर्ता-भाव मुक्त और कर्म-फल की इच्छा रहित हो,  
वह होनेवाली क्रिया–प्रक्रिया में ही
रमा हुआ रहता है
-अरुण  

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