यूँ ही बाँहों में सम्हालो के


यूँ ही बाँहों में सम्हालो के
सहर होने तक,
धड़कने दिल की उलझ जाएँ
गुफ्तगू कर लें

जुबां से कुछ न कहें,
रूह्भरी आँखों में
डूबकर वक्त को खामोश
बेअसर कर लें

जुनूने इश्क में बेहोश और
गरम सांसे
फजा की छाँव में
अपनी जवां महक भर लें

बेखुदी रात की
तनहाइयों से यूँ लिपटे
बेखतर दिल हो,
सुबह हो तो
बेखबर कर ले
-अरुण

Comments

yashoda Agrawal said…
कल 27/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .

धन्यवाद!
nayee dunia said…
बहुत सुन्दर कविता .......
waah! behtreen bhaav....
सुन्दर प्रेमपगी रचना....
सुन्दर भाव बिखेरती रचना....

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