यूँ ही बाँहों में सम्हालो के
यूँ ही बाँहों में सम्हालो के
सहर होने तक,
धड़कने दिल की उलझ जाएँ
गुफ्तगू कर लें
जुबां से कुछ न कहें,
रूह्भरी आँखों में
डूबकर वक्त को खामोश
बेअसर कर लें
जुनूने इश्क में बेहोश और
गरम सांसे
फजा की छाँव में
अपनी जवां महक भर लें
बेखुदी रात की
तनहाइयों से यूँ लिपटे
बेखतर दिल हो,
सुबह हो तो
बेखबर कर ले
-अरुण
Comments
धन्यवाद!
सुन्दर भाव बिखेरती रचना....