कुछ शेर और दिल की बात

ज्ञान नही, जो ज्ञानी को सख्त बना दे
ज्ञानी का पिघलना ही ज्ञान का लक्षण
.........
बीज से पेड़ उगाना तो तेरी मर्जी है
खुद बीज बनो ये तुम्हारे हाँथ नही
..............
अस्मिता को पुष्ट करें ऐसे प्रवचन
आसानी से उपलब्ध सभी 'चैनल' पर
.................................................. अरुण
दिल की बात
अपने इस USA प्रवास के दौरान
कई दिनों से भीतर बड़ी अजीब सी हलचल है
कहाँ भटक रहा हूँ कुछ समझ नही आता,
क्या मै दुनिया में रमें मन का हिस्सा हूँ या
मन से पार जाने की तड़प ...
कुछ कहा नही जाता
इतना ही पता है कि
अब भी सांसों में अटकाव है
विचारों में कोई भटकाव है
प्राणों का खिचाव है कई दिशाओं में
लिख तो लेतां हूँ पर अपना ही लिखा पढ़ नही पाता
साहित्य बनता तो है पर साहित्य में कोई रूचि नही है
विचार उभरतें हुए चौराहे पे चले आतें हैं
चौराहे पे उन्हें कई देखते तो हैं पर
क्या सोचते हैं पता नही,
शायद वे भी इस चौराहे पर अपनी बात मुझसे कहना चाहतें होंगे
पर मै अपने कहने में ही डूबा चला जा रहा हूँ और इसतरह
एक अशिष्ट आचरण का परिचय दे रहा हूँ
लोग माफ करेंगे या नही
कुछ पता नही........
............................. अरुण

Comments

Udan Tashtari said…
कभी कभी गलत आभास हो जाता है...


सुन्दर भाव!!




’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’

-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.

नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'

कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.

-सादर,
समीर लाल ’समीर’
Arvind Mishra said…
होता है ऐसा भी होता है जिन्दगी में मगर स्थाई नहीं ....फिकर नाट

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के