तीन दोहे

खोजत शब्दन थक गये, जो दिखलाये साच
शब्दों में खोजा बहुत, हुआ सत्य का भास
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मन-थियटर में बैठते, दिखे जगत की फ़िल्म
होत ध्यान स्थिर स्क्रीन पर, मन का बुझता इल्म
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कब रोना कब हासना, सब दुनिया की सीख
अपना तो कुछ भी नही, सब दुनिया की भीख
.......................................................... अरुण

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