कुछ शेर

मंदिरों का झुण्ड जब हाँथ जोड़े आसमाँ को
हर अलग मंदिर की मूरत झुण्ड पर हसने लगे
.......................
तर्जुमों के तर्जुमें हैं, जीस्त रू-ब-रू क्या करे
आईने हटतें नही हैं सामने से जब तलक
...................
अंदेशों से बने मंजिल अगर
तो राह अंदेशों की, चल पड़ेगी
..................................................... अरुण

Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के