क्योंकर ढूंढे तू भगवान?

क्योंकर ढूंढे तू भगवान?
खुदको ढूंढो कहाँ खो गया
तेरा तन मन प्राण
इसमें घाटा वहां कमाई, दौड़ धूप में दिवस गंवाई
हर पल सोचत रहता मन में कहाँ नफा नुकसान
क्योंकर ढूंढे तू भगवान?
हुई रात तो पलक झुक गई, दिन होते ही आँख खुल गई
बंटा रहा पर स्मृति सपनों में तेरा असली ध्यान
क्योंकर ढूंढे तू भगवान?
यह धरती यह नीला अम्बर, तुझसे अलग नहीं यह क्षणभर
फिर भी तुझको भ्रान्ति हुई है तेरा अलग विधान
क्योंकर ढूंढे तू भगवान?
खुदको ढूंढो कहाँ खो गया
तेरा तन मन प्राण
.......................................................... अरुण

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