कुछ शेर

किसको सजा ?, कौनसा इंसाफ करते हो?
कहा था न तुमने? - यह तो है 'उसी' की लीला
..........................
मर्ज कैसे सह सके, बेमर्ज हो जाना
मर्ज दीगर नही, सिवा मरीज के
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जिस निगाह से कुदरत खुद को देखे
वो निगाह देना, मुझे मेरे वजूद
.......................................... अरुण

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अन्तिम शेर तो एक प्रार्थना है।
मुग्ध हो गए सरकार !

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