दो सूत्र वचन

चाह- राह -श्रम- फल- सफल, विफल
सुख -दुखः, चिंतामय जगत प्रति-पल
....................
चाहे भगवान, चाहे अभिमान, चाहे पर- प्राण
सत- रज -तम की अलग अलग पहचान
......................................... अरुण

Comments

चाह से राह बने और श्रम से मिले सफ़लता पूरी.
अरुण ने दिया सूत्र, बात यह नहीं अधूरी.
नहीं अधूरी बात, किन्तु क्यों दिखे निराशा?
जीवन को समझो बन्धु! आशा ही आशा.
कह साधक छोङो अपनी, समझो अस्तित्व की चाह.
श्रम से मिले सफ़लता पूरी, चाह से बनती राह.

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