रोवां रोवां दर्द का ......

दर्द, गम, तन्हाई में मायूस था, बे-इंतिहा
रोवां रोवां दर्द का मुझको दिखा था दूर से
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बेखबर शीशा तो बेखबर नजारा है
जो भी है दायरे में, अक्स उभरता उसका
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मासूम बच्चों के जुबां पे सवाल जो भी हैं
किसी भी फलसफी के, बुनियादी मुद्दे हैं
.................................................... अरुण

Comments

Udan Tashtari said…
बहुत बढ़िया.

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