क्रियामयता ही समाधी
क्रिया बिना वाक्य अधूरा है
बाद में कर्ता को जानने में रूचि हो जाती है
किस पर हो रही है यह क्रिया
यह भी दर्शाया जाता है
आध्यात्मानुभूति में क्रिया ही क्रिया है
न कर्ता है और न ही कर्म
जिसे भ्रमवश चित्त कर्ता समझता है
वह भी क्रिया ही है
और चित्त जिसे कर्म रूप में देखता है
वह भी एक क्रिया ही है
क्रिया द्वारा क्रिया को क्रिया के रूप में देखना ही
समाधी है
.................................................. अरुण
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