व्यक्तिनिष्ठता

अहंकार का भाव ही भीतर की सारी

व्यक्तिनिष्ठता चला रहा है

इसी भावमयता में

दूसरों से अपनी तुलना,

असुरक्षा, डर, चिंता,

लोभ, गुस्सा, इर्षा एवं

महत्त्व-आकांक्षा का दौर जारी है

जिन विचारों, विश्वासों, पक्षो, व्यक्तियों और

भोगोलिक इकाई से नाता जोड़ लिया हो

उसके ही हित की बात सोचने की वृत्ति बनी रहती है



ऐसी ही भावनाओं के आधीन

होकर रहना और आचरण जगाना

व्यक्तिनिष्ठता का काम है



वस्तुनिष्ठ वैज्ञानिक भी अपने निजी जीवन में

व्यक्तिनिष्ठता के ही आधीन रहता है

उसे भी अपनी स्तुति अच्छी लगती है

(भले ही ऊपर ऊपर, उसका

आचरण अलग दिख रहा हो)

उसके मन में भी

प्रतिस्पर्धी-वैज्ञानिक के प्रति ममत्व नही रहता



सम्पूर्णनिष्ठता में,

व्यक्ति और वस्तु दोनों के परे होने पर,

न अहंकार है और न दूजा भाव

यह अनन्यभाव का जागरण है

(ऊपर जो लिखा है उपदेश नही है, एक तथ्य-निरूपण है)

.......................................... अरुण

Comments

Dorothy said…
अहंवादी सोच आपसी संबंधो के छीजन और विघटन का कारण बनता है और हर व्यक्ति अप ने छोटे छोटे निजी स्वर्गों में छुपकर दूसरों को नारकीय अग्निकुंड में झुलसते देख भी खामोश रहता है. काश ऐसा हो कि हम अलग थलग द्वीप बनने की बजाए एक दूसरे के लिए सेतु बन जाए.
बेहद सुंदर और संवेदनशील अभिव्यक्ति. आभार.
सादर
डोरोथी.

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

पुस्तकों में दबे मजबूर शब्द

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के