तन-मन–ह्रदय की गहराई से देखना
पानी में छड़ी डालो तो
तिरछी हुई लगती है
तिरछी होती नही, लगती है
यह दृष्टि-भ्रम है, इस बात को हम पूरी गहराई से देख लेते हैं
हम इस भ्रम को पकडते तो हैं
पर भ्रम हमें पकड़ नही पाता
यानी
डस नही पाता
ठीक इसके विपरीत
संसार माया है इस बात का
ज्ञान होते हुए भी
माया हमें डस लेती है
हमारा चित्त और आचरण बदल देती है
भ्रम या माया को विवेक या बुद्धि से देखना और
तन-मन और ह्रदय की गहराई से देखना
दोनों भिन्न क्रियाएं हैं
विवेक आत्म-संयम का मार्ग है
आत्म-बोध का नही
.............................................. अरुण
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