हम मन बनकर जी रहे हैं

मान लिया जाए कि कुँए का पानी

बिलकुल ही निस्वाद हो

न मीठा, न कड़वा, न तीखा,,न कसैला ...

कोई भी स्वाद नही

स्वाद जिस गिलास से पीया जाए,

उस गिलास में ही लगा हो

तो पीने वाले को कुए का पानी

उस स्वाद का महसूस होगा

जिस स्वाद का उसका गिलास होगा

जीवन बिलकुल निस्वाद है

न सुख की मिठास है और न

न दुःख की खटास

मन की अवस्था के अनुसार

कभी खुशी महसूस होती है तो

कभी गम

हम जीवन से नही जी रहे

हम मन बनकर जी रहे है

........................................ अरुण

Comments

POOJA... said…
जीवन बिलकुल निस्वाद है

न सुख की मिठास है और न

न दुःख की खटास

मन की अवस्था के अनुसार

कभी खुशी महसूस होती है तो

कभी गम

हम जीवन से नही जी रहे

हम मन बनकर जी रहे है
best lines... true poem...

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