‘वादी’ होना अस्वाभाविक है
किसी भी भावना या विचार विशेष की
अति या चरम पकड़ बैठना
सभी ‘वादियों’ (ism) की दुराग्रही सोच है
जो स्वाभाविक है उसे ही अस्वाभाविक परिमाण में
स्वीकारना मूर्खता है
अपनी माँ से प्रेम किसे नही होता ?
अपने देश के प्रति आत्मीयता किसे नही होती?
अपने धर्म से प्रायः सभी को लगाव होता है
शोषित के प्रति सभी के मन में स्वाभाविक दया होती ही है
सभी अपनी जात या समुदाय की तरफ थोड़े बहुत झुके होते ही हैं
अन्यायपूर्ण असमानता या भेदभाव देखकर सभी को दर्द होता है
किसी की होनेवाली हिंसा से सभी को चिड होती है
परन्तु जो इन सहज स्वाभाविक भाव-वृतियों का इस्तेमाल
संघर्ष हेतु संगठित होने में करते हैं
वे सब मातृप्रेमवादी, मातृभूमिवादी, राष्ट्रवादी,
भाषावादी, प्रांतवादी, धर्म-विशेषवादी, समाजवादी
साम्यवादी, जाती-विशेषवादी अहिंसावादी.....
ऐसी भिन्न भिन्न संज्ञाओं से जाने जाते हैं
वे अपने सम-विचारियों में भले ही सराहे जाते हों,
अतिरेकी (Extremist) प्रवृति के हैं
ऐसे लोग ही कट्टरपंथी, आतंकवादी बनने जा रहे हैं
...................................................... अरुण
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