खोज अधूरी
सदियों से आदमी
हम क्या हैं, क्यों हैं, कैसे हैं
कितने और कहाँ से कहाँ तक है
इन्ही प्रश्नों में उलझा हुआ है
परन्तु ‘हम हैं’ इस मूल सच्चाई के पीछे
अपने ‘है-पन’ या ‘होने’ (being ) को वह भूल रहा है
इस मूल सच्चाई को ध्यान से हटा कर
किया गया कोई भी खोज-चिंतन (वैज्ञानिक हो या आध्यात्मिक)
अधूरा या अपर्याप्त है
............................................. अरुण
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