बहुत ही ध्यान से, ध्यान पर ठहर कर पढ़ें

वर्तमान ही वर्तमान

अभी, यहाँ, यहीं

उसपर खड़ा है भूत का कमरा

उसपर खड़ी है स्वप्न की कुटिया

अभी यहीं यहीं

पर ध्यान बाधित है

विचरने के वायरस से

और इसीलिए

ध्यान विचर रहा है

कमरे के तहखाने में

ध्यान विचर रहा है

कुटिया के आकाश में

और भूल जाता है

अभी, यहाँ, यहीं वाली

अपनी मूल अवस्था

ऐसे भूलने को स्मृति कहतें है

ऐसे भूलने को ही स्वप्न कहतें है

ध्यान के विचरन को ही विचार कहतें है

और जब ध्यान न रहे वर्तमान में

तो उसे ही व्यापक अर्थ में अज्ञान कहते है

संसार में विचरने वाले हम सभी अज्ञानी है

सार में ठहरने वाला ही ध्यानी है और

ध्यानी ही व्यापक अर्थ में ज्ञानी है

....................................................... अरुण


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