सत्य पर शब्द चढ़ते नही

हवा को रंगने की कोशिश में

रंग दीवार पर चढ रहा है

हवा तो रंगीन होती नही

दीवार को ही- हवा

समझा जा रहा है

सत्य पर शब्द चढ़ते नही

पर शब्दों को ही गरिमा

प्राप्त हो गई है सत्य की

.................................. अरुण

Comments

Asha Joglekar said…
वाह सत्य और ब्रम को कुछ अलग अंदाज में प्रस्तुत कर रही ये कविता ।
बहुत सुन्दर व गहरी बात कह दी कम शब्दों मे। बधाई।

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के

पुस्तकों में दबे मजबूर शब्द