आईना और जीवन

आईने के भीतर

आईने का प्रतिमा-विरहित

शुद्धतमरूप देखने के लिए

जब भी झांकता हूँ

वहाँ अपनी ही प्रतिमा के सिवा

मुझे कुछ नही दिखता

..

ये तो आइना है जिसका

सरोकार किसी से भी नही

जो भी सामने आए

प्रतिबिंबित तो हो जाता है

पर किसी भी प्रतिबिम्बन को

आइना पकड़ कर नही रखता

जीवन का शुद्धतम स्वरूप

ऐसा ही प्रतिमा विरहित

प्रतिबम्बन मात्र है

........................................ अरुण




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तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.

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