किस मुकाम पे ये अहम पैदा हुआ
जो है आज उस से हटकर, कल की चाहत करना
अपने आप को घसीटते परेशां होना
सदियों से आदमी यही करता रहा
इसी को जिंदगी का मकसद कहता रहा
अब यही उसकी रोजाना जिंदगी है
मौत की जमीं है, फलती जिंदगी है
पता नही, किस मुकाम पे ये अहम पैदा हुआ
जिद्दोजहद का ये सिलसिला पैदा हुआ
शायद, उसी समय से खुदा का खयाल उभरा है
अमन के नाम पर अक्सर बवाल उभरा है
- अरुण
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