ऐसा कहा जाता रहा है कि आदमी के आध्यात्मिक उत्थान के मार्ग में षड रिपु - काम क्रोध लोभ मोह मद और मत्सर- बाधा बने रहते है. ये बाधाएँ छह नहीं हैं, एक ही के छह रूप हैं. जहाँ अपना अलग अस्तित्व या अहंता जगी, ये सभी एक दुसरे से अपना अपना रूप धरे चले आते हैं. काम से ही ममत्ववश मोह, मोह से लोभ, लोभ से मत्सर, और परिणामतः क्रोध फूटता है. अहंता ही मत्सर लाती है या मद का संचार जगाती है -अरुण
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MAN TO EK LAHAR HAI
JO KABHI HAI
KABHI NAHEE HAI
YE TO HAMARI EK KHAS AVASTHA HAI
AISI US PYARE KEE VYAVASTHA HAI