आत्म-वैज्ञानिक बनाम आत्मज्ञानी



मनोविज्ञान संशोधन के माध्यम से
मन को देखे बिना
मन के बारे में सही सही जानकारी
इकठ्ठा करता है.
आत्म-विज्ञान अंतर ध्यान का उपयोग कर
मन के परे क्या है
यह समझने की चेष्टा करता है
परन्तु जिसने परिस्थिति-देह-दृदय-मन- और मन के परे
वाली स्थिति को सकलरूप में, प्रज्ञ होकर
स्पष्टतः देख लिया,
वही आत्मज्ञानी है
-अरुण  

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