दो तरह के अंधे



अगर मान भी लें कि सारी दुनिया
इस अर्थ में अंधी हैं कि वह  
सत्य को देख-समझ नही पाती, फिर भी
इन अंधों में दो तरह के लोग है,
एक वे कि जिन्हें यह अनुमान तक नही है कि
वे अंधे हैं सो उनके लिए
जो भी वह देखते-समझते हैं वही सत्य है.
दूसरे वे जिन्हें यह अच्छीतरह पता है कि
उनका अंधत्व उन्हें
सही सही देखने नही दे रहा.
अधिकाधिक लोग पहले प्रकार के और
कुछ ही लोग दूसरे प्रकार के हैं.
पहले वाले अपनी सच्चाई पर
पूरा भरोसा किए जी रहे है तो
दूसरे वाले
सत्य की खोज के लिए प्रेरित हैं
-अरुण  

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