दोनों ही संसारी - एक खुला खुला, दूसरा बंधा बंधा



अज्ञान से तृष्णा, तृष्णा से तृप्ति, तृप्ति से नई अतृप्ति
और इस सतत की तृप्ति-अतृप्ति से
चलता यह संसार चक्र.
जो अज्ञान से जागा वह इस चक्र पर बैठकर
संसार की समाधानभरी यात्रा करता है
जो अज्ञान के आधीन रहा वह इस चक्र में उलझकर
संसार की विवंचना भरी यात्रा करता है
दोनों ही संसारी - एक खुला खुला, दूसरा बंधा बंधा
-अरुण    
  

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