रस डुबकी में हो, घाटों और सीढ़ियों में नही



सत्य या ईश्वर की धार में
पूरी तरह डूबे बुद्ध
अपनी डूब का बयान नही कर सके.
डूब से ऊपर जिसका सर उठा, उसने
संसार से संवाद करते, जो भी कुछ कहा,
उसकी बातों में चर्चा है केवल
उस घाट की जहां से
वह धार की ओर जाती सीढ़ियों पर उतरा,
उस रास्ते की जहाँ से वह घाट पर पहुंचा,
उन परिस्थितियों की
जो उसे धार को ओर खीँचकर ले गईं.
सुननेवाले का रस अगर डुबकी के अनुभव में हो तो
वह सारा ध्यान डुबकी पर देगा,
उसके लिए घाट और रास्तों का
वर्णन दुय्यम है.
परन्तु जिसे रास्तो,घाटों और सीढयों के
वर्णन में ही मजा आता हो,
उसे डुबकी में रस नही होता.
-अरुण

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