बिना किसी का नाम लिए ......
बिना किसी का नाम लिए
किसी विशिष्ट सन्दर्भ में मै अपनी बात सामने रख रहा हूँ. ऐसा इस लिए कर रहा हूँ ताकि
बात से ‘सही-समझ’ पैदा कर सकूँ. मेरे द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से किसी की भी निंदा या
समर्थन न हो जाए.
कुछ वर्षों पूर्व भारत
के एक प्रदेश में सांप्रदायिक दंगा भड़का और काफी हिंसा के बाद थमा. दंगे के पूरे प्रकरण
में एक जिम्मेदार राजनीतिज्ञ ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. देश में उसकी भूमिका
की काफी भर्त्सना हुई फिर भी उसकी भूमिका प्रदेश के अधिकाधिक लोगों को भा गई थी.
शायद उन्होंने उस आदमी में एक Problem solver या Performer देख लिया था.
प्रदेश की जनता के
एक बड़े हिस्से और उस Problem solver के बीच एक प्रभावी Tuning बैठ गई. आगे चलकर इसी Tuning का सही उपयोग कर उस राजनीतिज्ञ ने विकास के कामों की ओर अपना
ध्यान दिया. और विकास घटा. हो सकता है कि विकास-प्रचार विकास से कहीं ज्यादा हो गया
हो. पर चूँकि उस Problem solver को प्रदेश की जनता लगातार समर्थन देती रही है, उसके और जनता
के बीच की सही Tuning थी इस बात को झुठलाया नही जा सकता. ‘वह’ राजनीतिज्ञ जिस पार्टी
का सदस्य है उस पार्टी का उस राजनीतिज्ञ पर कोई अंकुश नही रहा. परन्तु अब जब उसका काम
प्रदेश द्वारा सराहा जा रहा है, पार्टी उसके साथ होती दिखना चाहती है ताकि इससे दूरगामी
लाभ उठाया जा सके.
लगातार मिलती राजनैतिक
सफलता के कारण, उस राजनीतिज्ञ का आत्मविश्वास और महत्वाकांक्षा काफी बढ़ी है,
पार्टी भी सोच रही है की देश में पार्टी का प्रभुत्व फिर से स्थापित हो सकता है यदि
‘वह’ सत्ता के प्रमुख स्थान पर पहुँच जाता है.
इस सन्दर्भ में उठे
कुछ सवालों का जबाब केवल भविष्य ही दे सकता है. ये सवाल हैं –
- जो Tuning उस प्रदेश में वहाँ की जनता और उसके बीच देखी गई क्या वैसी ही Tuning भारत की अधिकाधिक जनता और उसके बीच जीवित हो सकती है?
- उस प्रदेश के विकास का श्रेय वहाँ की जनता को भी है. क्या भारत की जनता विकास के क्षेत्र में उसका नेतृत्व सहज स्वीकारेगी?
- जो ‘दाग’ और ‘संदेह’ देश के बहुतेरे लोगों ने उसके चरित्र और नीयत पर लगाया है क्या उसे पोछने में ‘वह’ सफल हो सकेगा ? या कि ‘वह’ देश के विकास की बागडोर सम्हालने के दौरान, साम्प्रदायिक विभाजन का माहोल पैदा कर अधिकाधिक लोगों का समर्थन हासिल करने की कोशिश करेगा?
जनता ‘उसे’ कैसे लेगी ?- यह अब देखने वाली बात होगी.
-अरुण
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