विचल द्वारा अविचल की खोज संभव नही
जन्म अविचल का होता
है.
विचलित मास्तिष्कवाले उसे अपनी भीड़ में
समाहित कर लेते हैं
और उसे भी विचलित
और विचारित बना देते
हैं.
यही विचारित मस्तिष्क
अपनी सतत उभरने वाली
अतृप्ति से ऊबकर अविचल
की
खोज में निकल पड़ता
है.
पहले सांसारिक वासनाओं
को तृप्त करने के
प्रयास में वह असफल
रहा,
अब असांसारिक कल्पनाओं
को
वास्तविक बनाने के
प्रयास में
असफल हो रहा है.
बात वही की वही रही
क्योंकि
अब भी विचल या विचर
(विचार)
ही अविचल या
निर्विचार की खोज में
जुटा है
-अरुण
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