हमने सीखा है बचपन से कि 'जिंदगी जंग है ..लढोगे तो जीतोगे' परंतु जंग किसे कहें या समझे? - यह जानने में भूल की है ।इसीलिए शायद हम बाधाओं को हटाते समय... नये झगडे मोल ले रहे हैं । संवाद के लिए नही, बल्कि संघर्ष के लिए आमने सामने खड़े हैं.... अपनों की सुविधा के लिए नही, बल्कि परायों को परास्त करने इकट्ठा हो रहे हैं । जंगलों से प्राण सेवन करने के बजाय, उन्हें अड़चन समझकर काट रहे हैं । बाहरी संघर्ष अलग हैं.... तो भीतरी बिलकुल ही भिन्न । अहंकार से फली सारी बीमारियों से झगड़ने में बाहरी तरीक़े काम नहीं आते । बाहरी तरीके बाधाओं को नष्ट करते या उखाड़ फेंकते हैं । भीतरी तरीक़ा... अहंकार से फली बीमारी को स्पष्ट-समझ की आँखों से निहारते, उसे उसके स्थान पर ही विलोपित करता हैं, उससे झगड़ता नही । अंधेरे से झगड़ना नही है, प्रकाश को ले आना यानि समझ को जगाना है, ..बस । - अरुण