आज की तीन रुबाई

आज की तीन रुबाई
*********************
'मै' पुराना...लग रहा फिर से जवां
याद में ही ख्वाब होता है रवां
'मै' धुआँ..इसके अलावा कुछ नही
जल गयी जो जिंदगी उसका धुआँ
*******************************
बेलफ्ज् ख़ालीपन था.. पूरा भर दिया
जो नया देखा.. ख़याली  कर दिया
सूरत-ए-लम्हात देखी ही नही
दस्तक-ए-लम्हात से दिल भर दिया
***********************************
हम किसी भी हाल में .. भरपूर होते
हम किसी के साथ भी...खुशनूर होते
ये अकेलापन हमें महफ़ूज़ लगता
जोड़ क़ुदरत के..न दिल से दूर होते
*******************************
- अरुण

Comments

Popular posts from this blog

षड रिपु

मै तो तनहा ही रहा ...