सच्चाई अकेलेपनकी

सच्चाई अकेलेपनकी
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आदमी अकेला आता है, अकेला ही जाता है।इस आने और जाने के बीच के दिनों में, भीड़ की ज़िंदगी जीता है। भीड़ ने रची हुई ज़िंदगी की गिरफ़्त में रहकर वह अकेलेपन की सच्चाई को लाख कोशिशों के बावजूद भी महसूस नही कर पाता।
आदमी के सारे फ़लसफ़े (Philosophies) इसी अकेलेपन की चर्चा करते हैं।
मगर वही इसे महसूस कर पाते हैं जो भीड़ की ही नही, सारे फलसफों की गिरफ़्त से भी... दूर निकल जातें हैं।
- अरुण

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