अभी इसी साँस में .....

अभी इसी साँस में
जी रहा है...अस्तित्व
असली भी और नक़ली भी
असली की ख़बर नही
नक़ली ही सच जैसा
असली की ऊर्जा से
नकली में बल बैठा
इसी बल पर दुनियादारी चल रही है
बाती जले बीच में..इर्द गिर्द परछाई हिल रही है
साँस को परछाई का ख़्याल है
पर जलती बाती पर ध्यान ठहरता है
कभीकदा ही
- अरुण

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