धर्म

धर्म
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हमें हमारे सकल आवरण के साथ
जो धारण करता है - वह है धर्म
हम जिसे धर्म समझकर
धारण और ग्रहण करते हैं -
वह धर्म नही तथाकथित
धार्मिक कर्म है
- अरुण

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