ऊर्जा - मायावी भी.. सात्विक भी

ऊर्जा के अदृश्य गुबारे के बाहर-भीतर स्मृतिकी आभा विचर रही है ।स्मृति-आभा ऊर्जा के प्रभाव बल पर, हर क्षण नये आकार में ढलती बनती विचर रही है । इस स्मृति-आभा में भ्रम निर्माण की अद्भुत शक्ति है ।

इस आभा के क्षण क्षण टूटते जुड़ते माया का विचार-विश्व सृजित हो रहा है, ऊर्जा प्रवाह पर स्मृति के इस अविरत बिंबन के कारण, बिंबन को विचार-गति का अनुभव हो रहा है । गति से विचार और विचारक का भ्रममूलक द्वैत या division उभर रहा है ।

इसतरह, ऊर्जा बिंबन के प्रभाव में मायावी हो जाती है, हालाँकि , बिंबन न हो तो यह सदैव सात्विक ही है
- अरुण

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